सिमट गई
सूरज के रिश्तेदारों तक ही धूप
न जाने क्या होगा
घर में लगे उकसने काँटे
कौन किसी का क्रंदन बाँटे
अंधियारा है गली गली
गुमनाम हो गई धूप
न जाने क्या होगा
काल चक्र रट रहा ककहरा
गूँगा वाचक, श्रोता बहरा
तौल रहे तुम, बैठ-
तराजू से दुपहर की धूप
न जाने क्या होगा
कंपित सागर डरी दिशाएँ
भटकी भटकी सी प्रतिभाएँ
चली ओढ़ कर अंधकार की
अजब ओढ़नी धूप,
न जाने क्या होगा
घर हैं अपने चील घोंसले
घायल गीत जनम कैसे लें
जीवन की अभिशप्त प्यास
भड़का कर चल दी धूप
न जाने क्या होगा
सहमी सहमी नदी धार है
आँसू टपकाती बहार है
भटके को पथ दिखलाकर, खुद-
भटक गई है धूप
न जाने क्या होगा
स्मृतिमय हर रोम रोम है
एक उपेक्षित शेष व्योम है
क्षितिज अँगुलियों में फँस कर फिर
फिसल गई है धूप
न जाने क्या होगा
बलिदानी रोते हैं जब जब
देख देख अरमानों के शव
मरघट की वादियाँ
खोजने लगीं
सुबह की धूप
न जाने क्या होगा
--डॉ. जगदीश व्योम
अद्भुत रचना पढवाई.... आभार
ReplyDeleteआप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
ReplyDeleteमेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeletelondon olympic bicycle company
ReplyDeleteExcellent Working Dear Friend Nice Information Share all over the world.God Bless You.
Bicycle shops in north London
cycle shops north in london
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteWAH LAJBAB ......BADHAI AGRWAL JI
ReplyDeleteशुक्रिया नवीन भाई
DeleteSundar rchna yashoda ji....kabse apki link dhundne ki koshish kar rahi thi....sorry apke blog pe bohot der se aa payi....
ReplyDeleteधन्यवाद नूपुर बहन
ReplyDeleteआप आ तो गई
जहाँ चाह हो राह निकल ही जाती है
सादर
यशोदा
शुक्रिया तृप्ति जी
ReplyDeleteअच्छी रचना पढवाने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteशुक्रिया डॉ. दीदी
Deleteस्मृतिमय हर रोम रोम है
ReplyDeleteएक उपेक्षित शेष व्योम है
-------------------
badhiya rachna
आपको रचना अच्छी लगी, आभार
Deleteडा० जगदीश व्योम
स्मृतिमय हर रोम रोम है
ReplyDeleteएक उपेक्षित शेष व्योम है
क्षितिज अँगुलियों में फँस कर फिर
फिसल गई है धूप
न जाने क्या होगा
बलिदानी रोते हैं जब जब
देख देख अरमानों के शव
मरघट की वादियाँ
खोजने लगीं
सुबह की धूप
न जाने क्या होगा
beautiful lines with great emotions and feelings
आपको रचना अच्छी लगी, आभार
Deleteडा० जगदीश व्योम
बहुत सुन्दर, सार्थक रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अप्रतिम अनुपम।
ReplyDelete