तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Thursday 30 August 2012

हमारी याद आएगी...........रचनाकार :: अज्ञात

किसी से चोट खाओगे

हमारी याद आएगी,

तलाशोगे एक कतरा प्यार का,

किसी से कह न पाओगे,

तलाशोगे मुझे फिर तुम,

दिलों की तनहाइयों में,

कभी जब तनहा बैठोगे,

हमारी याद आएगी.

लौटा हूँ बहुत मायूस होकर

मैं तेरे दर से,

कभी खामोश बैठोगे

हमारी याद आएगी

समेट लेता सारे अश्क

तेरी आँखों की कोरों से,

कभी जब अश्क देखोगे

हमारी याद आएगी...!! 

रचनाकार:: अज्ञात 

प्रस्तुतिकरण :: सोनू अग्रवाल

Monday 20 August 2012

पिछले पन्नों में‍ लिखी जाने वाली कविता......तिथि दानी

अक्सर पिछले पन्नों में ही
लिखी जाती है कोई कविता
फिर ढूंढती है अपने लिए
एक अदद जगह
उपहारस्वरूप दी गई
किसी डायरी में
फिर किसी की जुबां में
फिर किसी नामचीन पत्रिका में

फिर भी न जाने क्यों
भटकती फिरती है ये मुसाफिर
खुद को पाती है एकदम प्यासा
अचानक इस रेगिस्तान में
उठते बवंडर संग उड़ चलती हैं ये
बवंडर थककर खत्म कर देता है
अपना सफर
लेकिन ये उड़ती जाती हैं
और फैला देती है
अपना एक-एक कतरा
उस अनंत में जो रहस्यमयी है।
लेकिन एक खास बात
इसके बारे में,
आगोश से इसके चीजें
गायब नहीं होतीं
और न ही होती है
इनकी इससे अलग पहचान

लेकिन यह कविता
शायद! अपने जीवनकाल में
सबसे ज्यादा खुश होती है
यहां तक पहुंचकर
क्योंकि
ब्रह्माण्ड के नाम से जानते हैं
हम सब इसे।





-तिथि दानी