तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Wednesday 21 September 2011

कोई काँटा चुभा नहीं होता.................बशीर बद्र

कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता

-बशीर बद्र

2 comments:

  1. बशीर जी की शानदार गजल पढ़वाने हेतु सादर आभार।

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  2. शुक्रिया संजय भाई

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