तुम देना साथ मेरा

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Thursday 13 December 2012

अर्जी छुट्टी की..........संतोष सुपेकर










छुट्टी की अर्जी,
केवल एक कागज
या दस्तावेज
ही नहीं....

एक भावना है..
एक आशा है
उम्मीद है...और
हक भी है

एक धमकी है..
बहाना है.... और
सपना भी है

सपना, जो टूटता भी है कभी
जब होती है खारिज अर्जी
और लिखा मिलता है उसपर
अस्वीकृत..

मुस्कुराते हुए बॉस की मर्जी

और...एक और छुट्टी की अर्जी
जो हरदम स्वीकृत ही होती है
इस घोर कलियुग में भी
मानवतता यहाँ नही सोती है

वह अर्जी है...
माँ की बीमारी की वजह से
माँगी गई छुट्टी
अक्सर उस 'बीमार' माँ के लिये
जो मर चुकी है,
कई वर्ष पूर्व गाँव मे..

--संतोष सुपेकर
--संपादनः यशोदा अग्रवाल

11 comments:

  1. ऐसा भी होता है !!!

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  2. छुट्टी की अर्जी का सच अच्छी रचना .बधाई .

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  3. बहुत सुन्दर!

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  4. आपकी कविता निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें। आप द्वारा सहमति प्राप्त होने पर आपकी कविता निर्झर टाइम्स साप्ताहिक के अगले अंक में प्रकाशित की जाएगी। इस प्रकाशन के लिए कोई मानदेय देय नहीं होगा।
    सादर!

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  5. अच्छा लगा पढ़ कर कि अभी भावनाओ की छुट्टी नहीं हुई है

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  6. वाकई छुट्टी की अर्जी उम्मीदों का दस्तावेज होती है..
    नीरज 'नीर'
    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)

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  7. bahut sunder rachna.chitra bhi bahut sunder

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  8. बहुत सुंदर रचना

    मैने आज ही ब्लाग बनाया है

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  9. बहुत सुंदर रचना है...मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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