तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Wednesday, 3 January 2018

आनन्द प्रेम का...



आनन्द
प्रेम का...
असम्भव है 
शब्दों में 
बता पाना
और ये भी कि 
क्या है प्रेम का
कारण... 
यह गूंगे का गुड़ है 
देह, मन, आत्मा का 
ऐसा आस्वाद है 
जिसके विवेचन में
असमर्थ हो जाती
इंद्रियां भी...
अलसा जाती हैं....
आस्वाद प्रेम का 
अनुभव तो करती हैं 
पर उसी रूप में
नहीं कर पाती
व्यक्त 
यही कारण है कि 
आज भी प्रेम 
अपरिभाषित है, 
नव्य है....
काम्य है....
ऐसा कौन सा
जीव होगा...
जो अछूता है
जादू नहीं चला
अबोध हो या
सुबोध हो 
अज्ञ, तज्ञ या विज्ञ
भी समझते हैं
आभा प्रेम की
स्पर्श प्रेम का
देह, मन और आत्मा को 
छू लेता है.... 
पेड़-पौधे तक 
इस स्पर्श को 
समझते हैं....
सृष्टि का आधार
प्रेम ही तो है....और
ये सृष्टि भी...
उसी का सृजन है
कहने को तो
अक्षर ढाई ही हैं
पर है तो..अब तक
अपरिभाषित...

-यशोदा
मन की उपज

20 comments:

  1. दी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जनवरी२०१८ के ९०३ वें अंक के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति। सृष्टि के स्पंदन को महसूसना प्रेम के निकट जाना है। सच कहा आपने प्रेम अब तक अपरिभाषित है।
    विद्वानों ने प्रेम को अंधा कहा है। आपने गूंगे का गुड़ कहकर प्रेम का मर्म समझने में सहायक उक्ति का ज़िक्र किया है।
    बधाई एवं शुभकामनाएं। लिखते रहिए।

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  3. लाज़वाब...बधाई एवं शुभकामनाएं

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  4. वाह!!यशोदा जी ..सही कहा आपने़ ....प्रेम की कोई परिभाषा नहीं.. बहुत सुंंदर !!

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  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/01/51.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/01/51.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  7. बहुत सुन्दर परिभाषा दी है आपने अपरिभाषित प्रेम की.......
    सुन्दर शब्द रचना
    वाह!!!

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  8. आज भी प्रेम
    अपरिभाषित है,
    नव्य है....
    काम्य है....
    सचमुच !!!!!! बहना !आपकी ये प्रेम की परिभाषा बहुत हृदयस्पर्शी है | सादर ,, सस्नेह !!

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  9. शब्द नही मिल रहे.....वाकई प्रेम अव्यक्त है।

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  10. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  11. सृष्टि का आधार
    प्रेम ही तो है....और
    ये सृष्टि भी...
    उसी का सृजन है
    कहने को तो
    अक्षर ढाई ही हैं
    पर है तो..अब तक
    अपरिभाषित...वाकई !
    प्रेम पर सुंदर सार्थक रचना ।

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  12. प्रेम शब्द कभी भी पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता । क्यों कि अलग अलग रूप में सामने आता है ।
    बेहतरीन रचना ।

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  13. सुन्दरतम व्याख्या !!

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  14. कहने को तो
    अक्षर ढाई ही हैं
    पर है तो..अब तक
    अपरिभाषित...

    प्रेम की सटिक व्याख्या, लाजवाब सृजन आदरणीया दी 🙏

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  15. बहुत ही सुंदर लिखा दी।

    यह गूंगे का गुड़ है
    देह, मन, आत्मा का
    ऐसा आस्वाद है
    जिसके विवेचन में
    असमर्थ हो जाती... वाह!

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