भाषा में
होता है ज्ञान
और...
अपना ज्ञान भी
होता है भाषा का
छोटे शब्दों में कहिए तो
भाषा यानि
ज्ञान भी
न मौन है
भाषा
और न ही
ज्ञान मौन है
एक पहचान है
भाषा...
जो अपने आप में
पूर्णता तक ..
पहूँचती है
...
पहुँच है तो
एक मार्ग के साथ
और एक ही भाषा
होती ही नही मार्ग की
मौन होते हैं कई
बोलिया भी है कई
और अंततः
यही होता है
ज्ञान...
-यशोदा
मन की उपज
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 97वां जन्म दिवस - सितारा देवी - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुन्दर।
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