तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Saturday, 12 November 2011

कितना चाहते है मुझे लोग .....मोहन बंजारा

मैं मोहब्बत गर करता हूँ तुमसे ,
इस बात पर क्यूँ अक्सर जल जाते हैं लोग

कोशिशें लाख करें बच नहीं पाते हैं लोग ,
हुस्न की आग से अक्सर पिघल जाते हैं लोग

 हर कोई चाहता है मोहब्बत में जीना ,
जाने क्यूँ फिर वफ़ा निभाना भूल जाते हैं लोग,

दर्द के लम्हात गर कभी पेश-ए-नज़र होते ज़माने वालों को,
जान जाते ये वो भी कि कैसे टूट कर बिखर जाते हैं लोग

तन्हाइयों में जीना मेरी आदत सी बन गयी है,
क्यूँ तन्हा करके मुझे अब कसमसाते हैं लोग

खुशियाँ जो हमसफ़र थी कभी ,ज़माने को बुरी लगती थी,
ग़म का भी गर सहारा है मुझे तो फिर भी आज तिलमिलाते हैं लोग

जाने क्या समझता है ये ज़माना  इस 'बंजारे ' को
छीन कर खुशियाँ मेरी ,ग़म मेरे नाम कर जाते हैं लोग..... बंजारा

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