अगर हवाओं के रुख, मेहरबाँ नहीं होते
तो बुझती आग के तेवर, जवाँ नहीं होते
दिलों पे बर्फ जमीं है, लबों पे सहरा है
कहीं खुलूस के झरने, रवाँ नहीं होते
हम इस ज़मीन को, अश्कों से सब्ज़ करते हैं
ये वो चमन है ,जहाँ बागबाँ नहीं होते
कहाँ नहीं हैं, हमारे भी ख़ैरख्वाह,मगर
जहाँ गुहार लगाओ वहाँ नहीं होते
वफा का ज़िक्र चलाया तो, हंस के बोले वो
फ़ुज़ूल काम हमारे यहाँ नहीं होते !!
तो बुझती आग के तेवर, जवाँ नहीं होते
दिलों पे बर्फ जमीं है, लबों पे सहरा है
कहीं खुलूस के झरने, रवाँ नहीं होते
हम इस ज़मीन को, अश्कों से सब्ज़ करते हैं
ये वो चमन है ,जहाँ बागबाँ नहीं होते
कहाँ नहीं हैं, हमारे भी ख़ैरख्वाह,मगर
जहाँ गुहार लगाओ वहाँ नहीं होते
वफा का ज़िक्र चलाया तो, हंस के बोले वो
फ़ुज़ूल काम हमारे यहाँ नहीं होते !!
--------मयंक अवस्थी
प्रस्तुतिकरणः सुरेश पसारी
वफा का ज़िक्र चलाया तो, हंस के बोले वो
ReplyDeleteफ़ुज़ूल काम हमारे यहाँ नहीं होते !!
kya kahun...??? bahut hi khoobsurat hai...
वफा का ज़िक्र चलाया तो, हंस के बोले वो
ReplyDeleteफ़ुज़ूल काम हमारे यहाँ नहीं होते !! ..WAAH WAAH EK DUM SATIK BAAT...