तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Wednesday, 11 January 2012

मैं रुक गयी होती............................."दीप्ति शर्मा "

जब मैं चली थी तो
तुने रोका नहीं वरना
मैं रुक गयी होती |
यादें साथ थी और
कुछ बातें याद थी 
ख़ुशबू जो आयी होती
तेरे पास आने की तो
मैं रुक गयी होती |
सर पर इल्ज़ाम और
अश्कों का ज़खीरा ले
मुझे जाना तो पड़ा
बेकसूर समझा होता तो
मैं रुक गयी होती |
तेरे गुरुर से पनपी 
इल्तज़ा ले गयी
मुझे तुझसे इतना दूर
उस वक़्त जो तुने 
नज़रें मिलायी होती तो
मैं रुक गयी होती |
खफा थी मैं तुझसे 
या तू ज़ुदा था मुझसे
उन खार भरी राह में
तुने रोका होता तो शायद 
मैं रुक गयी होती |
बस हाथ बढाया होता 
मुझे अपना बनाया होता 
दो घड़ी रुक बातें 
जो की होती तुमने तो 
ठहर जाते ये कदम और 
मैं रुक गयी होती |
------ "दीप्ति शर्मा "

1 comment:

  1. जीवन में चल कर ही मंजिल मिल पाती,चलना है शूल मिले तो क्या पथ पर अंगार जले तो क्या,जीबन में कहा बिराम है,चलना ही अपना काम है/

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