क्षणिकाएं
(1)
जानवर की कोख से
जनते न देखा आदमी
आदमी की नस्ल फिर क्यों
जानवर होने लगी।
(2)
गो पालतू है जानवर
पर आप चौकन्ने रहें
क्या पता किस वक़्त वो
इन्सान बनना ठान ले।
(3)
पड़ोसी मर गया, अब यह खबर अखबार देते हैं
सोच लो किस तर्ज़ में हम ज़िन्दगी का बोझ ढोते हैं,
अब तो मैं भी छोड़ता बिस्तर सुनो तस्दीक़ कर,
नाम मेरा तो नहीं था कल ’निधन’ के पृष्ठ पर।
------के. पी. सक्सेना
(1)
जानवर की कोख से
जनते न देखा आदमी
आदमी की नस्ल फिर क्यों
जानवर होने लगी।
(2)
गो पालतू है जानवर
पर आप चौकन्ने रहें
क्या पता किस वक़्त वो
इन्सान बनना ठान ले।
(3)
पड़ोसी मर गया, अब यह खबर अखबार देते हैं
सोच लो किस तर्ज़ में हम ज़िन्दगी का बोझ ढोते हैं,
अब तो मैं भी छोड़ता बिस्तर सुनो तस्दीक़ कर,
नाम मेरा तो नहीं था कल ’निधन’ के पृष्ठ पर।
------के. पी. सक्सेना
गज़ब शानदार व्यंग्यात्मक शैली मे सुन्दर क्षणिकायें।
ReplyDeleteमेरे गुरुदेव हैं ये.. बहुत अच्छे और तीखे अशार!!
ReplyDeleteमेरे गुरुदेव हैं ये.. बहुत अच्छे और तीखे अशार!!
ReplyDelete