तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Friday, 20 January 2012

चेहरा.....................तरुण पन्त

मैने देखा चिंता और प्यार,
झुर्रियों की तह के पीछे,
डबडबाती हुई आँखों में अजीब सी चमक,
और चेहरे पे एक खोखली सी हँसी,

मैले फटे हाथों की लकीरों को देखती हुई आँखें,
जैसे अब भी कुछ होने का इन्तजार है,
फिर देखती हुई पल्लू में पड़ी एक गांठ को,
जैसे जीवन भर की दस्तान उसमें हो,

कुछ यादों की पनाह में,
जैसे एक जिंदगी चल रही है,
वर्तमान के खांचे में,
अतीत की खिड़की खुल रही है,

कुछ सोचते हुए आँखे भर आई उसकी,
जैसे सिलापट पे बिखरी ओस की कुछ बूंदे हो,
डबडबायी आँखों में अब दर्द है,
और चेहरे पे एक जानी पहचानी सी मुस्कान ...


- तरुण पन्त

2 comments:

  1. बहुत खूब, लाजबाब !
    कुछ सोचते हुए आँखे भर आई उसकी,
    जैसे सिलापट पे बिखरी ओस की कुछ बूंदे हो,
    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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