प्रेम करना
ईमानदार हो जाना है
यथार्थ से स्वप्न तक ..समष्टि तक
फैल जाना है
त्रिकाल तक
विलीन कर लेना है
त्रिकाल को भी ..प्रेम में.. अपने
जी लेना है अपने
प्रेमालाम्ब में सारी कायनात को पहली बार
प्रेम करना
देखना है खुद को
खोजना है
खुद से
बाहर
मन को छूता है कोई
पहली बार
बज उठती है देह की वीणा
सजग हो उठता है मन –प्राण
चीजों के चर –अचर जीव के ..जन के
मन के करुण स्नेहिल तल तक
छूता है कोई जब पहली बार
सुंदर हो जाती है
हर चीज
आत्मा तक भर उठती है
सुंदरता
अगोरती है आत्मा अगोरती है
देह
देखे कोई नजर
हर पल हमें .
----रंजना जायसवाल ईमानदार हो जाना है
यथार्थ से स्वप्न तक ..समष्टि तक
फैल जाना है
त्रिकाल तक
विलीन कर लेना है
त्रिकाल को भी ..प्रेम में.. अपने
जी लेना है अपने
प्रेमालाम्ब में सारी कायनात को पहली बार
प्रेम करना
देखना है खुद को
खोजना है
खुद से
बाहर
मन को छूता है कोई
पहली बार
बज उठती है देह की वीणा
सजग हो उठता है मन –प्राण
चीजों के चर –अचर जीव के ..जन के
मन के करुण स्नेहिल तल तक
छूता है कोई जब पहली बार
सुंदर हो जाती है
हर चीज
आत्मा तक भर उठती है
सुंदरता
अगोरती है आत्मा अगोरती है
देह
देखे कोई नजर
हर पल हमें .
जितना नाज़ुक और सुंदर प्रेम है, उतनी ही यह कविता.. बधाई
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना.....
ReplyDeleteशुक्रिया.
शुक्रिया
ReplyDeleteBeautiful lines. True emotions.
ReplyDeleteBeautiful lines. True emotions.
ReplyDeleteसुंदर रचना ! बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteप्रेम की पावनता का चित्रण और उसकी व्यापकता में समाहित अनंत मनोभावों का सौंदर्यबोध उमड़ा है अपने कलात्मक स्वरुप में। मन का रंजन करती उम्दा प्रस्तुति। बधाई।
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