तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Saturday, 17 March 2012

मेरे जाने के बाद.............................स्मृति जोशी ''फाल्गुनी''

कुछ मत कहना तुम
मैं जानती हूँ
मेरे जाने के बाद
वह जो तुम्हारी पलकों की कोर पर
रुका हुआ है
चमकीला मोती
टूटकर बिखर जाएगा
गालों पर
और तुम घंटों अपनी खिड़की से
दूर आकाश को निहारोगे
समेटना चाहोगे
पानी के पारदर्शी मोती को,
देर तक बसी रहेगी
तुम्हारी आँखों में
मेरी परेशान छवि
और फिर लिखोगे तुम कोई कविता
फाड़कर फेंक देने के लिए...
जब फेंकोगे उस
उस लिखी-अनलिखी
कविता की पुर्जियाँ,
तब नहीं गिरेगी वह
ऊपर से नीचे जमीन पर
बल्कि गिरेगी
तुम्हारी मन-धरा पर
बनकर काँच की कि‍र्चियाँ...
चुभेगी देर तक तुम्हें
लॉन के गुलमोहर की नर्म पत्तियाँ।
----स्मृति जोशी ''फाल्गुनी''

3 comments:

  1. सुन्दर..........बहुत सुन्दर.......

    चुभेगी देर तक तुम्हें
    लॉन के गुलमोहर की नर्म पत्तियाँ।

    लाजवाब...........

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    Replies
    1. सुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

      कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर पधार कर अपनी राय प्रदान करें.

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  2. बल्कि गिरेगी
    तुम्हारी मन-धरा पर
    बनकर काँच की कि‍र्चियाँ...
    चुभेगी देर तक तुम्हें
    लॉन के गुलमोहर की नर्म पत्तियाँ। waah... waahh... behatareen se behatareen....

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