इन उजालों के शहर में
सिर्फ अंधियारा बचा है
आइए कुछ दीप अपनी
आत्मा के हम जलाएं
यूँ यहाँ पर रोशनी
बेजार ही होती रही तो
मुल्क की खातिर बुझे
उन चाँद तारों को जगाए
हर जगह कालिख बनीं
अब प्रेरणाएं वक्त की
है कहां चंदन जिसे हम
भाल पर अपने लगाएं
देश का आदर्श अब तो
भ्रष्ट जीवन-जाल है
रह गई है आज बाकी
महज स्वप्निल वर्जनाएं
छंद हम टाँके कहाँ तक
रोशनी के पक्ष में
कालिमा के पृष्ठ कैसे
आज गोया भूल जाएं
गर चमकना चाहते हो
तो उठा लो फिर मशालें
बुझाती जिनकी रही हैं
स्वार्थ की पछुआ हवाएं
यह जमाना खोट का है
सच कहें तो वोट का है
तंत्र का जादू यहाँ पर
आओ हम तुमको दिखाएं
देखी तो दुनिया निराली हो गई
श्वेत होकर भी ये काली हो गई है
यही इतिहास का क्रम देख लो
जाते-जाते मिट रही उनकी सदाएं
-------प्रकाश नारायण
यह जमाना खोट का है
ReplyDeleteसच कहें तो वोट का है
तंत्र का जादू यहाँ पर
आओ हम तुमको दिखाएं
वाह!बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
सादर
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कल 26/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ..
ReplyDeletevery nice
ReplyDelete♥
ReplyDeleteयशोदाजी
बहुत ख़ूबसूरत ब्लॉग और सुंदर संकलन के लिए बधाई !
आपकी स्वयं की कविता पढ़ने की अभिलाषा लिए पुनः आऊंगा …
:)
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और
शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार