तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Wednesday, 21 September 2011

तब याद आया..................................सचिन

तब याद आया हमको कि चोटों ने क्या दिया
इन पत्थरों ने जब हमे चलना सिखा दिया

छोटी सी जिद पे बच्चे कि आँखे जो नम हुई
थाली में चाँद माँ ने ज़मीं पर ही ला दिया

आँखों ने जब भी की है नयी रौशनी की जिद
हमने भी एक चिराग जलाया बुझा दिया

ये सुनके मेरी बेटियाँ सहमी हुई हैं आज
फिर से रसोई में कोई जिंदा जला दिया

खुद शर्म आई फिर हमे अपने रुसूख पर
सिक्के को जब फ़कीर ने मिटटी बना दिया......

-सचिन अग्रवाल 'तन्हा'

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